इतिहास के पन्ने

महात्मा गांधी का वो सच जो आपसे छिपाया गया है! mahatma gandhi

महात्मा गांधी की उपाधि

mahatma gandhi हम सभी महात्मा करमचंद गांधी को महात्मा के नाम से अधिक जानते हैं महात्मा का अर्थ होता है साधु या संत जबकि गांधी जी तो गृहस्थ थे उनके परिवार में पत्नी कस्तूरबा के अलावा उनके बच्चे भी थे ऐसे में उनका नाम भल महात्मा क्यों और कैसे पड़ा सन 1916 में गांधी जी को सौराष्ट्र के एक कॉलेज के दीक्षांत समझ में आमंत्रित किया गया था गांधी जी ने उसे निमंत्रण को स्वीकार कर लिया वह समय के पाबंद थे इसलिए समय पर कॉलेज में पहुंच गए वहां के प्रधानाचार्य गांधी जी से बहुत प्रभावित थे वे अपने कॉलेज में विद्यार्थियों को गांधी जी के अहिंसक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते थे गांधी जी को कॉलेज में विद्यार्थियों को संबोधित करना था प्रधानाचार्य ने मंच पर गांधी जी को पुकारते हुए कहा महात्मा जी कृपया विद्यार्थियों को संबोधित करें पहली बार अपने लिए यह सब सुनकर गांधी जी थोड़ा चित के और फिर विद्यार्थियों को संबोधित करने लगे एक दिन महान साहित्यकार रविंद्र नाथ टैगोर उनसे मिलने के लिए आए बातों बातों में उनके मुंह से भी महात्मा शब्द निकल गया उसे समय वहां पर और कुछ व्यक्ति भी बैठे हुए थे उन्होंने भी महात्मा सब सुन लिया इस तरह महात्मा शब्द एक व्यक्ति सिद्ध होते हुए धीरे-धीरे जन-जन में फैल गया!

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एक समय ऐसा आया कि गांधी जी का पर्याय ही महात्मा बन गया यह आज तक बना हुआ है और आगे आने वाले सैकड़ो वर्षों तक बना रहेगा हालांकि शुरुआत में जब गांधी जी को कोई महात्मा का कर पुकारता था तो उन्हें अच्छा नहीं लगता था वह कहते थे कि इस शब्द में आडंबर झलकता है लेकिन फिर तेजी से उनका यही नाम लोकप्रिय हो गया अब तो गांधी जी का नाम महात्मा से ही प्रारंभ होकर महात्मा गांधी हो गया।

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दरअसल गांधी जी अहिंसक और प्रत्येक व्यक्ति को एक समान समझने वाले मनुष्य थे इसलिए लोगों ने उन्हें महात्मा की उपाधि दे दी।

बापू और खादी

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एक बार गांधी जी स्वस्थ लाभ के लिए बेंगलुरु के पास नदी पर्वत पर जाकर ठहरे हुए थे उसे समय एक विद्यालय की कुछ बालिकाएं उनसे मिलने के लिए आई हुई थी उनसे बातें करते हुए गांधी जी बोले क्या तुम्हें मालूम है कि खादर क्या चीज होता है यह सुनकर कुछ बालिकाएं बोली बापू खादर कपड़ा होता है गांधी जी बोल कैसा कपड़ा क्या तुम तुम में से कोई बता सकती है । की खादर का कपड़ा कैसा होता है या सुनकर सभी लड़कियां चुप हो गई और एक दूसरे की ओर देखने लगी एक लड़की कुछ सोच कर बोली बापू खद्दर कपड़ा खुरदरा होता है उसकी बात सुनकर गांधी जी मुस्कुराने लगे और बोले हाथ के सूट का हाथ से बना कपड़ा खादर कहलाता है!

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उनकी बात सुनकर कुछ लड़कियां चाह कर बोली हां बापू चरखे से सूट काटने पर यह बनता है बापू बोले अब तुम यह बताओ कि खादर के कपड़े क्यों पहनना चाहिए गांधी जी इस प्रश्न पर सभी लड़कियां अपने-अपने तरीकों से जवाब देने लगी कोई कहने लगी बापू यह टिकाऊ होता है दूसरे कहने लगी यह जल्दी साफ हो जाता है और सब की बातें सुनकर गांधी जी बोले वह सब तो ठीक है लेकिन तुमसे तुम्हें से किसी ने यह नहीं बताया कि इसे क्यों पहनना चाहिए इसका और क्या कारण है इस पर एक लड़की बोली बापू आप ही बताइए ना गांधी जी बोल बच्चों खद्दर का सूट गरीब लोग काटते हैं।

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हमारे देश के लोग बहुत गरीब हैं कई लोगों को तो पेट भर खाने को भी नहीं मिलता है दूध भी नहीं मिलता ऐसे ही लोग खादर को काटते हैं यदि खद्दर के माध्यम से उन्हें कुछ रुपया मिलता है तो वह उनसे अपनी जीविका की वस्तुएं खरीद सकता है और अपने बच्चों के लिए दूध हो आते चावल की व्यवस्था कर सकता है इसलिए हमें खादर पहनना चाहिए ताकि हमारी माध्यम से हर व्यक्ति को भरपेट भोजन मिलने की व्यवस्था हो सके सभी बालिकाओं ने उनकी बात सुन को ध्यान से सुना और बोली बापू हम अपने घरों में माता-पिता से कहेंगे कि हमें भी खादर ही पहनना है उनकी बात सुनकर बापू मुस्कुरा दिए।

गांधी जी के तीन बंदर ( mahatma gandhi 3 Bandar )

बच्चों गांधी जी के तीन बंदर बहुत प्रशिद्ध है, स्कूलों में अक्सर बच्चे उनके तीन बंदरों के बारे में नाटिका प्रस्तुत करते हैं कविता बनाते हैं और लेख भी लिखते हैं क्या आपको मालूम है कि गांधी के पास हुए बंदर कहां से आए कैसा था।

पूरे विश्व में गांधी जी के तीन बंदर कैसे प्रसिद्ध हुए नहीं मालूम ना चलिए बताते हैं यह पढ़कर आपको अवश्य उत्सुकता हो रही होगी चलिए हम आपकी इस उत्सुकता को शांत करते हैं हुआ यह की कई दिनों से गांधी जी के पास तीन बंदर वाला एक खिलौना रखा हुआ था गांधी जी के पास दिनभर में अनेक लोग आते थे उनसे सभी की नजर उनके पास रखे बंदर वाले खिलौने पर जाती और वह हैरानी से गांधी जी की और देखते ही उन्होंने भला स्कूलों की कमरे में क्यों रखा हुआ है खिलौना तो बच्चों के पास होना चाहिए एक दिन व्यक्ति ने हिम्मत करके वह गांधी जी से इसके बारे में पूछ ही लिया वे बोले बापू आपके कमरे में यह तीन बंदर वाला खिलौने क्यों रखा हुआ है जरूर इसके पीछे कोई गहरा राज है आप साधारण खिलौना रखने वालों में से नहीं है व्यक्ति की बात सुनकर बापूजी मुस्कुरा कर बोले बिल्कुल तुम्हारा कहना सही है दरअसल यह तीनों बंदर मेरे गुरु हैं यह खिलौना महादेव भाई को एक चीनी व्यक्ति ने दिया था वहां से यह मेरे पास आ गया मैं इस खिलौने को ध्यान से देखा तो मुझे इसमें अच्छा रहस्य छिपा नजर आया।

यदि इस रहस्य को व्यक्ति अपने जीवन में उतार ले तो उसका जीवन धन्य हो सकता है यह सुनकर वह व्यक्ति बोला बापू फिर तो मुझे भी वह रहस्य बताइए ना गांधी जी बोले पहले बंदर ने अपनी आंखें बंद कर रखी है वह कहता है कि अपनी आंखों से कोई बुराई मत देखो दूसरा बंदर जिसे अपना मूड बंद रखा है यह कहता है कि कभी झूठ मत बोलो किसी की बुराई ना करो तीसरा बंदर जो कान बंद किया है वह हमें सिखाता है कि हम बुरी बात ना सुने क्योंकि बुरी बातों का निंदा से मां का चैन छिन जाता है अत इससे बचना चाहिए वह गांधी जी के बंदर वाले खिलौने के रहस्य की बातें सुनकर दंग रह गया बोल बापू वाकई इस बंदर वाले खिलौने के पास तो बड़ी अच्छा बातें छपी है उसकी बात सुनकर गांधी जी मुस्कराकर बोले इस खिलौने करना केवल बाहरी रूप सुंदर है बल्कि भीतरी रूपी मानव कल्याणकारी है इसलिए इस खिलौने को मैं अपने गुरु मानता हूं बस इसके बाद तो गांधी जी का बंदर वाला खिलौना गांधी जी के तीन बंदर नाम से मशहूर हो गया अब तो आप भी गांधी जी के बंदरों का राज समझिए तो फिर क्यों ना आज से आप भी गांधी जी के तीन बंदरों की तरह रहे अर्थात आप भी झूठ ना बोले बुरा ना देखें बुरा ना सुने।

लाल बहादुर शास्त्री जी के जन्मदिन पर विशेष

पूरा देश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की जयंती के बेसब्री से प्रतीक्षा करता था अनेक लोग ऐसे थे जिन्हें गांधी जी के संपर्क में रहकर उनके संध्या में अहिंसा एवं सत्य के बल पर देश के लिए महत्वपूर्ण कार्य करने के अवसर प्राप्त हुए थे और समय ही गांधी जी की हत्या के कारण एक बार तो जैसे पूरा देश थम सा गया था लेकिन समय अत्यंत बलवान होता है वह निरंतर अपनी गति से चलता रहता था सुख एवं दुख जीवन एवं मृत्यु समय की घड़ी के बीच में घटित होते रहते थे घटनाएं बनी रहती थी और फिर एक दिन इतिहास में परिवर्तित हो जाती है अनेक कार्यकर्ताओं गांधी जी को याद करते हुए अपने-अपने आंसुओं को नहीं रोक पाए थे लाल बहादुर शास्त्री भी गांधी जी को अपना आदर्श मानते थे उन्हें के पद कॉन का अनुसरण करते हुए वह स्वयं ईमानदारी एवं सादगी के प्रति मूर्ति थे वह देश को प्रगति पथ पर ले जाने के लिए मेहनत से कार्य करते थे अनेक कार्यकर्ताओं एवं नेता लाल बहादुर शास्त्री जी की कार्यक्षमता सादगी एवं ईमानदारी देखकर बेहद प्रभावित होते थे 2 अक्टूबर के दिन में एक नेता से बातचीत कर रहे थे पूरे देश में गांधी जी गांधी जयंती धूमधाम से मनाई जा रही थी अचानक नेता बातचीत रोककर बोले शास्त्री जी आज तो आपका जन्म दिवस है आपको जन्मदिन की अनेक अनेक बधाई आज आपका जन्म दिवस भी मनाया जाना चाहिए आखिर यह वर्ष में एक बार आता है बोलिए आपको जन्म दिवस पर क्या उपहार दिया जाए इस पर सादगी की प्रतिमूर्ति शास्त्री जी बोले जिस व्यक्ति का जन्म हुआ है उसका जन्म दिवस वर्ष के किसी ने किसी दिन तो आता ही है पर मैं सौभाग्यशाली लोगों में से एक हूं जिनका जन्मदिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्म दिवस के दिन पड़ता है बापू अत्यंत महान थे उन्होंने देश को कई दिशा दी और देश की दशा को सुधारने में अंत तक अपना योगदान दिया ऐसी महान विभूति के जन्म दिवस के दिन मेरे जन्मदिन का पडना पर नहीं मेरे जन्म दिवस का सर्वोत्तम उपहार है।

 

लाल बहादुर शास्त्री के इस जवाब को सुनकर नेता दंग रह गए और उनकी सादगी के प्रति नतमस्तक हो उठे।

गांधी जी और गीता

गांधी जी भागवत गीता को अमूल ग्रंथ मानते थे उनका उनका मानना था कि जीवन की हर समस्या का समाधान गीता में दिया हुआ है व्यक्ति जितना ज्यादा गीता के भाव में उतरता है जाता है वह उतना ही अधिक निखरता जाता है उन्होंने विभिन्न धर्म का अध्ययन किया था आध्यात्मिक ज्ञान उन्होंने गीता में पाया इतना ही नहीं उन्होंने जैन बौद्ध इस्लाम सभी में यह पाया कि हर धर्म अहिंसा पर बोल देता है ईशा के पहाड़ी उपदेश का गांधी जी पर बहुत प्रभाव पड़ा उन प्रवचनों को उन्होंने अपने हृदय में बसा लिया था उनकी बुद्धि ने गीता के साथ-साथ उनके प्रवचनों की तुलना की तो पाया कि हर धर्म में प्रेम करना और अहिंसा को ही वास्तविक धर्म माना गया है हर धर्म का संदेश यही है जो तुमसे कुर्ता मांगे उसे अंगरखा भी दे दो।

अगर कोई तुम्हारे दाएं गाल पर तमाचा मार तो बाएं गाल भी उसके सामने कर दो इन संदेशों को गांधी जी ने जीवन भर अपनाया जब भी असमंजस की स्थिति में होते तो गीता की शरण में चले जाते वह स्वयं कहते थे जब संकाय मेरा पीछा करती है जब निराशा मुझे घर कर देखती है और जब शिक्षित पर मुझे प्रकाश की एक किरण भी नजर आती है तो तब मैं गीता की ओर मुड़ता हूं और घर आते हुए दुख के बीच मुस्कुरा देता हूं गांधी जी गीता की ओर विलायत में आकर्षित हुए थे विलायत में उन्हें दो भाइयों ने गीता के बारे में बताया था वह भाई एडमिन एनल द्वारा किया गया गीता का अंग्रेज़ी अनुवाद पढ़ रहे थे उन दोनों भाइयों ने गांधी जी को संस्कृत में गीता पढ़ने के लिए आमंत्रित किया था आमंत्रण प्रकार गांधी जी लज्जा से भर गए क्योंकि तब तक उन्होंने गीता को संस्कृत दिया मातृभाषा में पढ़ाई ही नहीं था पर वे उन भाइयों से साथ संस्कृत में गीता पढ़ने के लिए तैयार हो गए फिर तो वह जैसे-जैसे गीता के श्लोक को पढ़ने गए उनके मन में वह श्लोक गहनता से बैठने गए गांधी जी ने गीता के लगभग सभी अंग्रेजी अनुवाद पढ़ लिए थे उन्हें एडमिन नल्ड का अनुवाद सबसे अधिक पसंद आया और गीता के मूल के अनुरूप लगा कई वर्षों तक के बाद गांधी जी ने गीता गीता का नित्य पाठ करना प्रारंभ कर दिया था गांधी जी का मानना था कि यदि प्रत्येक व्यक्ति गीता को कंठस्थ कर ले तो उनके उपदेशों को अपने जीवन में उतार ले तो अनेक परेशानियों के बावजूद उनका जीवन सफल बन जाता है।

गांधी जी की दांडी यात्रा

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दांडी यात्रा का अभिप्राय उस पैदल यात्रा से है जो महात्मा गांधी ने अपने अनुयायियों के साथ 12 मार्च 1930 को शुरू की थी इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य अंग्रेजों द्वारा बनाए गए नमक कानून को तोड़ना था दांडी यात्रा को नमक सत्याग्रह के नाम से भी जाना जाता है मार्च अप्रैल 1930 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत में एक बहुत बड़ा अहिंसक विरोध प्रदर्शन हुआ भारत में अंग्रेजों का शासन था अंग्रेजों ने हर वस्तु पर अपना एकाधिकार जमाया हुआ था महात्मा गांधी अहिंसक तरीके से इसका विरोध करते थे ब्रिटिश शासन के खिलाफ गांधी जी ने सत्याग्रह के एक बड़े अभियान के रूप में दांडी मार्च किया था जो की बेहद प्रभावशाली सिद्ध हुआ पूरी जनता ने गांधी जी का समर्थन किया और इस तरह इस सत्याग्रह ने विश्व का ध्यान रख अपनी ओर खींचा भारत में नमक उत्पादन और वितरण पर अंग्रेजों ने एकाधिकार जमाया हुआ था अंग्रेजों ने तरह-तरह के कानून बनाकर भारतीयों को गुलाम बना रखा था उनके नमक बनाने या बेचने पर रोक लगाई गई थी अंग्रेज भारतीयों के मुंह मांगो दामों पर नमक देते थे इस तरह भारतीयों को अपने ही देश में नमक की महंगी कीमत चुकानी पड़ती थी अंग्रेजों ने नमक पर भारी कर लगाया हुआ था इस कारण जब गरीब भारतीय लोगों को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता था । गांधी जी ने अंग्रेजों के इस अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए अपने सत्याग्रहों के साथ साबरमती आश्रम से 384 किलोमीटर दूर स्थित दांडी यात्रा के लिए प्रस्थान किया लगभग 26 दिनों बाद यानी की 6 अप्रैल 1930 को दांडी पहुंचकर उन्होंने समुद्र तट पर नमक कानून तोड़ा अरब सागर के तटीय इलाके पर बसा दांडी गांधी जी के कीचड़ में सने नमक को उठते ही ऐतिहासिक पलों का गवाह बन गया दांडी यात्रा के दौरान महात्मा गांधी ने सूरत वज दमन के बाद नवसारी को यात्रा के लिए आखिरी दिनों में अपना पड़ाव बनाया था गांधी जी का कहना था कि नमक जीवन के लिए जरूरी है इसलिए इसे अंग्रेजों के कानून से मुक्त होना चाहिए दांडी यात्रा के बाद भारतीयों के साथ ही विश्व को यह एहसास हो गया था कि अब अंग्रेजों का अंत निकट है इसके बाद भारतीयों ने एकजुट होकर ब्रिटिश शासन से मुक्ति के प्रयास तेज कर दिए थे आखिर भारतीयों का परिणाम एवं त्याग रंग लाया और भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हो गए।

महात्मा गांधी :- आओ बच्चों राजघाट को जाने

 

राजघाट क्यों प्रसिद्ध है यह तो आप सब जानते ही हैं यहां पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि स्थित है 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी जी की हत्या कर दी गई थी राजघाट पर गांधी जी का अंतिम संस्कार किया गया था इसके बाद यहीं पर उनका अंतिम विश्राम स्थल बना दिया गया राजघाट भारत की राजधानी दिल्ली में यमुना नदी के किनारे है यह समाधि काले संगमरमर से बनी हुई है इस पर गांधी जी के मुख्य से निकले अंतिम शब्द ही राम उदित है राजघाट को प्रसिद्ध आर्किटेक्ट वाणु जी बूटा द्वारा डिजायन किया गया था वाणु जी बूटा जी ने राजघाट के राजघाट के स्मारक को डिजाइन करते समय सादगी एवं शांति का पूरा ध्यान रखा था आज यह एक सुंदर उद्यान का रूप ले चुका है यहां पर प्रकृति एवं हरियाली की अद्भुत नजारे हैं पर्यटकों को यहां आकर अद्भुत शांति एवं सादगी का एहसास होता है या दिल्ली का सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थल है दूर-दूर से पर्यटक यहां आते पर आते हैं भारत आने वाले विदेशी उच्च अधिकारी महात्मा गांधी को राजघाट पर  श्रद्धांजलि देने के लिए अवश्य आते हैं यह स्मारक काले संगमरमर से वर्गाकार में बना हुआ है इसके एक किनारे पर तांबे के कलश में मसाल जलती रहती है इसके चारों ओर कंकर युक्त फुटपाथ और हरे भरे लोन है स्मारक को पीले गेंदे के फूलों से सजाया गया है यहां आने वाले आगंतुक इस स्मारक को प्रवेश करने से पहले अपने जूते को उतार देते हैं यहां हर शुक्रवार को महात्मा गांधी की याद में प्रार्थना का आयोजन किया जाता है|

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गांधी जी प्रतिदिन प्रार्थना सभा में अवश्य जाते हैं राम नाम सदैव उनके मुख पर आता है वह अहिंसा के पुजारी थे उन्हें बातों को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक शुक्रवार को प्रार्थना का आयोजन किया जाता है राजघाट पर प्रत्येक वर्ष महात्मा जी के जन्मदिवस एवं पुण्यतिथि पर विशेष समारोह का आयोजन किया जाता है राजघाट में गांधी मेमोरियल संग्रहालय भी बना हुआ है इस संग्रहालय में महात्मा गांधी के जीवन और दर्शन पर चलचित्र भी चलता रहता है राजघाट एवं गांधी संग्रहालय में जाने पर व्यक्ति के अंतर्मन में स्वत ही अहिंसा प्रेम एवं करुणा के भाव उत्पन्न होते हैं वहां का परिवेश प्रत्येक व्यक्ति को मानवीय गुना से प्रसन्न कर देते हैं।

चंपारण में गांधीजी

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सन 1916 में लखनऊ के कांग्रेस के अधिवेशन में बिहार के लोगों ने गांधी जी को चंपारण के किसानों की आपबीती सुनाई बिहार के तिरूर प्रखंड में नील की खेती बहुत तैयार में होती थी नील का पौधा बहुत संवेदनशील होता है उसकी विशेष देखभाल करनी पड़ती है नील को गौर विदेशी सोने के भाव बेचते थे। उन्होंने गरीब किसानों के नील के खेत अपने कब्ज में लिए थे कानून प्रत्येक किसान को अपनी 20 कट्ठा जमीन में तीन कट्ठा जमीन पर नील का उत्पादन करना पड़ता था इस बेकार को तीन कटिया कहा जाता था जो किसान इस बात का तनिक विरोध करता था उसे अंग्रेजों के घोर अत्याचार का शिकार होना पड़ता था |

आज के इस सारी वस्तु स्थिति को जचने के लिए चंपारण की ओर रुख किया वहां की गंदगी शिक्षा रहन-सहन और न किया जीवन को देखकर गांधी जी बहुत द्रवित हुए उन्होंने कस्तूर बाजी को भी वहां बुला लिया साथ-साथ घूम घूम कर गांव का दौड़त किया और स्त्रियों की दारुण दशा के बारे में बापू को बताया वहां स्त्रियों के पास पहनने क के लिए कपड़े भी नहीं थे यह देख कर गांधी जी ने घर-घर जाकर लोगों को चरखा चलाकर अपने लिए स्वयं ही कपड़ा तैयार करने के लिए प्रेरित किया कुछ ही समय में चंपारण में उन्होंने कड़ी को विशेष लोकप्रिय बना दिया वहां पर उन्होंने एक भीतर हवा नामक स्कूल भी खिला वहां पर लोगों को स्वच्छता एवं शिक्षा के प्रति जागरूक करती और उन्हें छोटे-मोटे रोगों की दवाइयां बनता करती थी गांधी जी भी अब तक किसानों के शोषण के प्रति प्रमाण एकत्रित कर चुके थे उन्होंने उन्हें परमाणु की अवधार पर सरकार के समक्ष याचिका दयाल दाखिल कर दी सरकार ने सर एडवर्ड गेट की अध्यक्षता में एक जांच समिति का गठन किया प्रमाण इतनी सटीक थे कि किसानों और गांधी जी जीत गई इस प्रकार एक साड़ी से जारी तिनकाठिया कानून रद्द हो गया गौरव ने किसानों को हर्जाना दिया और इस प्रकार गांधी जी के माध्यम से चंपारण के किसानों को न्याय मिला चंपारण में रहकर गांधी जी ने वहां की बढ़ता स्थिति को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई उनका पूरा-पूरा साथ दिया और वहां रहने वाली स्त्रियों के अंदर स्वास्थ्य शिक्षा व साफ भोजन के प्रति जागरूकता उत्पन्न की इस प्रकार चंपारण के सभी किसान गांधी जी के साथ ही स्वतंत्रता के कार्यों से जुड़ गए और देश को स्वतंत्र करने के लिए गांधी जी के साथ अपना योगदान देने के लिए आगे आने लगे।

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गांधी जी और स्वच्छ भारत

स्वच्छ भारत एक भारत श्रेष्ठ भारत या बापू का सपना था अपने जीवन काल में उन्होंने स्वयं शौचालय की साफ सफाई करके यह संदेश दिया था कि स्वच्छता केवल कुछ लोगों की बपौती नहीं है बल्कि स्वच्छता तो हर व्यक्ति का जीवन का अहम हिस्सा है इसलिए स्वयं को परिवार को समाज को व राष्ट्र को स्वच्छ बनाने का प्रयास प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए स्वच्छता मां की शांति तन की परिवेश की और हर स्थान की होनी चाहिए व्यक्ति के घर कपड़े और भोजन में स्वच्छता के साथ-साथ विचारों में भी स्वच्छता और शुद्धता होनी चाहिए जिस प्रकार धूल मिट्टी और गांधी व्यक्ति के व्यक्तित्व एवं परिवेश को गंदा कर देते हैं उसी प्रकार नकारात्मक विचार भी व्यक्ति की आत्मा को दूषित कर देता है इसलिए व्यक्ति के भजन और विचार सात्विक होने चाहिए गांधी जी के सपनों को सच करने के लिए भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने महात्मा गांधी की 145 सी जयंती पर स्वच्छ भारत अभियान की घोषणा की थी इस अभियान के अंतर्गत उन्होंने 2 अक्टूबर 2014 को राजपथ पर जन्म समूह की को संबोधित करते हुए सभी भारतवासियों से स्वच्छ भारत अभियान में भाग लेने के साथ ही इसे सफल बनाने का आगरा भी किया था तब से लेकर अभी तक 4 वर्ष बीत चुके हैं इन चार सालों के दौरान 40 करोड़ भारतीय अब खुले में सोच नहीं जाते हैं 4 साल के अंतर्गत ही स्वच्छता का दायरा 39% से बढ़कर 95% पहुंच गया है एक किस राज्यों के साथ ही संघ शासित क्षेत्रों और साढे चार लाख गांव अब खुले में शौक से मुक्त है स्वच्छ भारत अभियान आत्म सम्मान एवं श्रेष्ठ भविष्य से जुड़ा हुआ है गांधी जी का प्रिय भजन था वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीर पराई जाने रे इन पंक्तियों का अर्थ है कि भली आत्मा वह है जो दूसरों के दुख का एहसास कर सके और आगे बढ़कर खुशियों की सेवा कर सके यही भावना व्यक्ति को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है जब व्यक्ति दूसरों के दुखों को दूर करने का प्रयास करता है तो उसके स्वयं के दुख दूर हो जाते हैं और खुशियां एवं सुख उसके आंगन में बिखर जाते हैं इसलिए हम सभी को बापू के सपनों का भारत बनाने के लिए हर संभव योगदान देना चाहिए ताकि भारत विश्व के शीर्ष पर स्थापित होकर विश्व का हर कोने में अहिंसा करुणा और प्रेम का संदेश दे ।

गांधी जी और पानी का सदुपयोग

जल ही जीवन है या न केवल व्यक्तियों के लिए बल्कि सभी प्राणियों के लिए अनिवार्य है व्यक्ति भोजन के बिना कुछ दिन गुजर सकता है लेकिन जल क्या भाव में उसका ज्यादा दिनों तक जीवित रहना मुश्किल है पूरे विश्व में पेयजल में तेजी से कमी आ रही है ऐसे में हम सभी का यह करते हुए बनता है कि हम जल का केवल सदुपयोग ही ना करें बल्कि उसकी बूंद बूंद बचे बूंद बूंद से ही सागर बनता है इसलिए जल की एक बूंद भी अनमोल है गांधी जी प्रत्येक वस्तु का उपयोग करने का मितव्ययिता बढ़ते थे वह जल का उपयोग भी अत्यंत सावधानी पूर्वक करते थे गांधी जी के आश्रम के समीप ही साबरमती नदी बहती थी सभी लोग इस नदी के माध्यम से जल की आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे गांधी जी भी मंजन करते समय स्नान करने समय इस नदी के जल का प्रयोग किया करते थे एक दिन गुजरात के प्रसिद्ध लोक सेवक रविशंकर महाराज जी उनके साथ थे वह उनके साथ साबरमती नदी के पास गए उन्होंने नदी से थोड़ा सा पानी लिया और एक और को अपना मुंह साफ करने लगे रवि शंकर जी ने देखा कि बापू पानी की एक बूंद का प्रयोग भी बेहद सावधानी से कर रहे हैं यह देखकर वह बोले बापू समीप ही इतनी बड़ी नदी बह रही है फिर आप पानी का प्रयोग करने में भी कंजूसी क्यों कर रहे हैं रवि शंकर महाराज की यह बात सुनकर बापू बोले यदि सभी लोग ऐसा सोचते कि पानी तो सरलता से मिल जाता है इसलिए सावधानी पूर्वक प्रयोग क्या करना चाहिए ऐसे में तो एक दिन सुख की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी हमें हमारे सभी प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग करना चाहिए यह संसाधन यदि पृथ्वी पर काम हो गए तो मृत्यु का जीवन तय हो जाएगा पृथ्वी पर वैसे भी उपयोग किए जाने योग्य जल काम है हम सभी व्यक्ति को बापू ने बहुत पहले ही यह बता दिया था कि जल के साथ ही प्रत्येक वस्तु का सदुपयोग करना चाहिए वस्तुओं का सदुपयोग करने से जीवन सहस्त्र से चलता रहता है देश की प्रगति के लिए यह जरूरी है कि प्रत्येक व्यक्ति वस्तु का सदुपयोग करें।

गांधी जी के दो मुख्य नियम

गांधी जी ने समय के साथ-साथ प्रार्थना और उपवास के महत्व को समझ लिया था उनका मानना था कि मानवता के कल्याण के लिए हमारे पास असाधारण शक्तियां बिक्री हुई है उन शक्तियों को जो व्यक्ति समझ लेते हैं वह अपने कार्य क्षेत्र के साथ-साथ अपने जीवन को भी सफल बना लेते हैं प्रार्थना और उपवास को वे ऐसे ही असाधारण शक्तियां मानते थे वह कहते थे कि यह दो हथियार व्यक्ति की आत्मा की शक्ति को बढ़ाते हैं प्रार्थना धाम का सार है प्रार्थना के माध्यम से लोग अपनी पीड़ा हुआ परेशानियां व्यक्त करते हैं और चिट को शांत कर आनंद एवं शांति प्राप्त करते हैं सभी धर्म में प्रार्थना की जाती है बेशक उनके तरीके अलग-अलग होते हैं इस तरह से हर धर्म में उपवास भी किए जाते हैं प्रार्थना और उपवास दोनों ही शरीर के लिए भोजन की तरह आवश्यक है इन दोनों को अक्सर एक साथ भी देखा जाता है प्रार्थना और उपवास से शरीर एवं आत्मा की शुद्ध होती है उनका मानना था की प्रार्थना केवल दोहराव नहीं और ना ही उपवास का अर्थ केवल शरीर को भूखा रखना है प्रार्थना हृदय से उत्पन्न होनी चाहिए उपवास के वास्तव में बुरे वह हानिकारक विचारों तथा वरिष्ठ भोजन से दूर रहना चाहिए उन्होंने उपवास के माध्यम से यह संदेश दिया कि उपवास एक ऐसी विधि है जिसका प्रयोग प्रेम और सहानुभूति रखने वाले के खिलाफ किया जाना है सन 1924 में उन्होंने हिंदू मुस्लिम एकता के लिए 21 दिनों तक उपवास किया था सन 1933 में उन्होंने आत्म शुद्धि के लिए एक कि दोनों का उपवास किया अगस्त 1947 और जनवरी 1948 में उन्होंने कोलकाता एवं दिल्ली में सांप्रदायिक एकता को बनाए रखने के लिए उपवास किया उन्होंने उपवास के माध्यम से राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव को शुद्ध किया उनकी प्रार्थना और उपवास में इतनी अधिक सकती थी कि अंग्रेज भी उसके आगे लाचार हो जाते थे उन्होंने प्रार्थना उपवास और अहिंसक शक्तियों को अपने अंदर जागृत करके ही देश को स्वतंत्र करने में निर्णायक भूमिका निभाई और शक्तिशाली व्यक्ति अंग्रेजों के शासन को उखाड़ फेंका प्रार्थना उपवास और अहिंसा के शस्त्र से अधिक बल होता है इसलिए उनका सदुपयोग करना चाहिए और जीवन को प्रसन्नता पूर्वक परोपकार करते हुए बिताना चाहिए।

प्रमुख गांधी साहित्य

मैं जो प्रकरण लिखने वाला हूं उनमें यदि पाठकों के अभियान का भाषी हो तो उन्हें अवश्य ही समझ लेना चाहिए कि मेरे शोध में खामी है और मेरी झांकियां मेरी जल के समान है मेरे सामान अनेक का छे चाहे हो परिषद की जय हो अल्प आत्मा को मापने के लिए हम सत्य कागज भी छोटा ना करें चाहता हूं कि मेरे लिखे को कोई प्रमाण भूत ना समझे यही मेरी विनती है कि मैं तो सिर्फ यह चाहता हूं कि उनमें बताएंगे प्रयोग को दृष्टांत रूप मानकर आप सब अपने-अपने प्रयोग यथाशक्ति और तथा माटी करें मुझे विश्वास है कि इस संकुचित क्षेत्र में आत्मकथा के मेरे लिखे में बहुत कुछ मिल सकेगा क्योंकि खाने योग्य एक भी बात में छुपा लूंगा नहीं मुझे आशा है कि मैं अपने दोस्तों का ख्याल पाठकों की को पूरी तरह दे सकूंगा मुझे सत्य के शास्त्रीय प्रयोग का वर्णन करना है मैं कितना भला हूं इसका वर्णन करने की मेरी तनिक भिक्षा नहीं है जी गत से स्वयं में अपने को मापना चाहता हूं और जिसका उपयोग हम सबको अपने-अपने विषय में करना चाहिए

यह सूचना गलत है कि गांधी जी आज के औद्योगीकरण के बारे में बहुत पुराने विचार रखते हैं सच पूछा जाए तो विल उद्योगों के यंत्रीकरण के विरुद्ध नहीं थे गांव के लाखों कार्यक्रमों को कम दे सकने वाले छोटे यंत्रों में भी सुधार किया जाए उसका वे स्वागत करते थे गांधी जी बड़े-बड़े कारखाने में विपुल मात्रा में माल पैदा करने के बजाय देश के विशाल जैन समुदायों द्वारा अपने घरों और झोपड़ि मैं माल का उत्पादन करने की हिमायत करते थे वह भारत के प्रत्येक सबल व्यक्ति को पूरा काम देने के बारे में बहुत अधिक चिंतित रहते थे और मानते थे कि यह अध्याय तभी सिद्ध होगा जब गांव में सुचारू रूप से ग्रामोद्योग तथा कुटीर उद्योग का संचालन और किया जाएगा महात्मा गांधी ग्राम पंचायत के संगठन द्वारा आर्थिक और राजनीतिक सत्ता के विकेंद्रीकरण का जोरदार समर्थन करते थे दुर्भाग्य से आर्थिक जीवन में के नैतिक और आध्यात्मिक पहलू की हमेशा उपेक्षा की गई है जिसके फल स्वरुप सच्चे मानव कल्याण को बड़ी हानि पहुंची है आधुनिक अर्थशास्त्री अब इस महत्वपूर्ण आवश्यकता पर जोर देने लगे हैं कि यदि हमें विशाल पैमाने पर तीव्र गति से आर्थिक विकास साधना है तो वस्तुओं की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए मनुष्यता की गुणवत्ता भी बढ़ानी चाहिए अर्थ वर्तमान स्थिति में गांधी जी के ग्राम स्वराज की अवधारणा के पठन-पाठन की माहिती आवश्यक करता है

सन 1909 में लंदन से दक्षिण अफ्रीका लौटते हुए जहाज पर हिंदुस्तानियों के हिंसावादी पंत को और इस विचारधारा वाले दक्षिण अफ्रीका के एक वर्ग को दिए गए जवाब के रूप में लिखी यह पुस्तक पहला पहला दक्षिण अफ्रीका में छपने वाले साप्ताहिक इंडियन ओपिनियन में प्रकट लिखी हुई थी लिखने के 100 वर्ष बाद यह इतनी प्रासंगिक और विचारशील कृति है कि यह बालक के हाथ में भी दी जा सकती है यह द्वैध धर्म की जगह प्रेम धाम सिखाती है हिंसा की जगह आत्म बलिदान को रखती है पशु बल से टक्कर लेने के लिए आत्म बल को खड़ा करती है हिंदुस्तान अगर प्रेम की सिद्धांत को अपने जीवन धर्म के एक सक्रिय अंश के रूप में स्वीकार करें और उसे अपनी राजनीतिक में शामिल करें तो स्वराज स्वर्ग से हिंदुस्तान की धरती पर उतरेगा हिंद स्वराज में बताए हुए संपूर्ण जीवन सिद्धांत को आचरण में लाने से राष्ट्र को सामने जो प्रश्न है समस्याएं हैं उनका उत्तर और समाधान खोजने में मदद करेगी।

गांधी जी के अनुसार मानव जीवन ज्ञान भक्ति और कर्म के सामान्य है और गीता उनसे संबंधित सभी समस्याओं का समाधान है स्वास्थ्य धैर्य पूर्वक गीता का किया गया अध्ययन जीवन के गुण रहस्य को उजागर करता है गांधी जी ने गीता को शास्त्र को निचोड़ माना है उन्होंने गीत माता में शोक की शब्दों के अर्थ देते हुए टीका की गांधी जी का विश्वास था कि जो मनुष्य गीता का भक्त होता है उसे कभी निराश नहीं गिरती वह हमेशा आनंद में रहती है भारत की धरती ना एक ऐसा महान मानव पैदा किया जिसने न केवल भारत की राजनीतिक का नक्शा बदल दिया अपित यू विश्व को सत्य अहिंसा शांति और प्रेम की उसे अजय शक्ति के दर्शन कारण जिसके लिए ऐसा यह गौतम बुद्ध का स्मरण किया जाता है गांधी जी का धर्म समूची मानव जाति के लिए कल्याणकारी था उन्होंने स्वयं को दरिद्र नारायण का प्रतिनिधि माना गांधीजी का विश्वास था कि भारत का उत्थान गांव की उन्नति से होगा उसके लिए सत्य से बढ़कर कोई धर्म और अहिंसा से बढ़कर कोई करतब नहीं था गांधी जी संसार की अमर विभूति है।

गांधी जी के सपनों का भारत गरीबी निरक्षता और एस्प्रियता की बुराइयों से सर्वथा मुक्त है उसमें जाति वर्ग अथवा संप्रदाय का भेदभाव नहीं है स्त्री पुरुष में समानता है हर एक को अपनी आवाज उठाने का हक है देश के विकास में सभी का योगदान है तो आजादी और समृद्धि का लाभ को सबको प्राप्त है आत्मा अनुशासित स्वराज को जो अपना गांधी जी ने देखा वह आज तो क्या सदियों तक प्रसांगिक बना रहेगा इस पुस्तक में गांधी जी ने अपने बुनियादी मुसलमानों के साथ यह स्पष्ट किया है कि वह देश के भाभी राजनीतिक और सामाजिक विकास में कैसे सहायक होंगे।

महात्मा गांधी का अंतिम दिन

मृत्यु जीवन का एक अटल सत्य है जिसका जन्म हुआ है उसका अंत निश्चित है गांधी जी का जीवन बहुत सादा था वह अहिंसक एवं उच्च विचारों को प्रमुखता देते थे सदा जीवन जीने के कारण ही वे स्वस्थ रहते थे 79 साल की उम्र होने पर वह तेजी से पदयात्रा करते थे और लगातार श्रम करते थे गांधी जी प्रतिदिन प्रार्थना सभा में जाया करते थे 30 जनवरी 1948 की संध्या को प्रार्थना स्थल पर जाते समय उन्हें 10 मिनट की देर हो गई वह नियम एवं समय का शक्ति पालन करते थे 10 मिनट की देरी होने पर वे मनु से अपनी नाराजगी जताते हुए बोले आज प्रार्थना में 10 मिनट की जो देर हो गई उसमें दोस्त तेरा भी है नरसी का यह धर्म है कि वह बीमार का हर काम समय पर करने की सावधानी रखें किसी बीमार को दवा पिलाने के समय हो गया तो उसे उसे समय अगर नस यह सोचे कि उसके पास में कैसे जाऊं मैं जीवन से उसके आराम का बड़ा पहुंचेगी तब तो वह बेचारा मर ही जाएगा प्रार्थना की बात भी ऐसी ही है 1 मिनट की देरी भी प्रार्थना में हो तो मुझे बहुत बुरा लगता है उसे समय मनु गांधी जी के दाएं और थी अचानक एक हष्ट पुष्ट व्यक्ति खाकी वस्त्र पहने और हाथ जोड़ते हुए लोगों के भीड़ को तेजी से चीरता हुआ मनु की और आया यह देखकर मनु बोली भाई बापू को वैसे ही 10 मिनट की देरी हो गई है आप क्यों उन्हें सता रहे हैं उसे युवक ने मनु की बात पर ध्यान न देते हुए उसे इतनी जोर से धक्का दिया कि उसका हाथ से नोटबुक आदि नीचे गिर गया लेकिन फिर भी वह उसे युवक को जुजिति रही अचानक तभी माल नीचे गिर गई मनु उसे उठाने के लिए झुकी तो एक के बाद एक तीन तारतार गोलियों की आवाज पूरे वातावरण में गूंज उठी चाचू और अंधकार वह निशब्दाता छा गई गांधी जी हाथ जुड़े हुए ही है राम हे राम बोलते हुए जमीन पर गिर पड़े उसे समय कुछ समय तक सब लोग की शब्द हो गए ऐसा लगा जैसे समय ठहर गया हो कुछ समय बाद अनेक लोगों ने गांधी जी को संभालने की कोशिश की लेकिन सब व्यर्थ मानो तो यह समझ ही ना पाए कि अचानक कुछ पल में क्या से क्या हो गया गोलियां बिल्कुल उसके कान के पास से गुजरी थी इसलिए वह कुछ भी सुनने की स्थिति में नहीं थी गांधी जी के सफेद वेस्टन से रक्त की धार बह रही थी धरती रक्त से लाल हो गई थी और गांधी जी के हाथ अंतिम समय में भी नमस्कार की मुद्रा में खड़े हुए थे मानव प्रार्थना कर रहे हो कुछ ही देर में उनका शरीर शांत हो गया उनके प्राण शरीर हरी घास ऐसी प्रतीत हो रहा था मानव व धरती मां की गोद  मैं सुकून की नींद सो रहे हो।

यह खबर सुनकर पूरा विश्व स्तंभ एवं अचंभित रह गया कि अहिंसा एवं कर्म के प्रणेता महात्मा गांधी जी अब इस दुनिया में नहीं रहे 10 लाख से अधिक लोग उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए और उन्हें अंतिम विदाई दी।

पहला बड़ा आघात

गांधी जी के भाई पोरबंदर के भूतपूर्व राणा साहब के मंत्री और सलाहकार थे एक दिन किसी ने राणा साहब से उनके भाई की बुराई करते हुए उनकी शिकायत कर दी उसे शिकायत पोलिटिकल एजेंट तक पहुंच गई गांधी जी उसे पोलिटिकल एजेंट से विलायत में मिल चुके थे यह जानकर भाई ने कहा कि पोलिटिकल एजेंट से मिलकर इस बारे में बात करनी चाहिए और इस झूठे मामले को खत्म कर देना चाहिए भाई की इच्छा जानकर गांधी जी उसे अधिकारी से मिलने के लिए पहुंच गए उन्होंने अधिकारी को विलायत का परिचय कराया अधिकारी ने विलायत की परिचय तो याद कर लिया पर काम करने से साफ इनकार किया वह बोले तुम्हारी भाई के बारे में मुझे कुछ भी नहीं सुनना है यदि उन्हें अपनी सफाई के बारे में कुछ कहना है तो वह विधिवत प्रार्थना पत्र दे गांधी जी ने विनम्रता से दोबारा अपने भाई के बारे में कुछ कहना चाहा तो अधिकारी गुस्से से बोल अब आप जाइए फिर उन्होंने आदेश पाल को बुलाकर कहा इन्हें बाहर का दरवाजा दिखा दो आदेश पाल ने हाथ से धक्के देकर गांधी जी को दरवाजे के बाहर कर दिया गांधी जी इस अपमान से तिलमिला गए उन्होंने एक पत्र लिखा आपने मेरा अपमान किया है आदेश पाल के जरिए मुझे मुझ पर हमला किया है आप माफी नहीं मानेंगे कि तो मैं आप पर महान नानी का मुकदमा करूंगा उसे चिट्ठी का जवाब में अधिकार ने लिखकर भेजा तुमने मेरे साथ सभ्यता का व्यवहार किया जाने के लिए कहाँ पर भी तुम नहीं गए इसलिए मैं जरूर अपने आदेश पाल को तुम्हें दरवाजा दिखाने के लिए कहा तुम्हें तो करना है तुम करो या जवाब जब उन्होंने अपने वकील मित्रों को दिखाया तो सब ने यही कहा कि तुम अभी नए-नए वकील हो भारत में ऐसी घटनाएं सभी वकील मित्र के साथ हुई है इसलिए चुपचाप इस घटना को भूलकर अपने कार्य में लग जाइए यही बेहतर है किंतु गांधी जी को यह अपमान घूंट पानी बेहद करवा लेगा यह उनके जीवन का पहला बड़ा आघात था इस आघात ने उनके जीवन की दशा बदल दी इसके बाद गांधी जी ने स्वयं को आंतरिक रूप से मजबूत बना लिया और अहिंसक नीतियों से ईमानदारी के लिए साथ अंग्रेजों से लड़ते रहे और उन्हें देश से निकाल कर ही दम लिया।

बैरिस्टर गांधी

सन 1887 में गांधी जी ने मैट्रिक की परीक्षा पास की उसके बाद उनके एक संबंधी ने परिवार वालों को कहा कि महात्मा को यदि विलायत से बैरिस्टर की पढ़ाई करने के लिए भेजा जाए तो बहुत अच्छा होगा मोहन की माता जी ने यह जब यह समाचार सुना तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया इस पर महात्मा ने कहा मां मैं तो शपथ पूर्वक करता हूं कि मानस मंदिर एवं अन्य व्यक्तियों से दूर रहूंगा कुछ दिनों बाद गांधी जी इंग्लैंड पहुंच गए उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ द लंदन से कानून की पढ़ाई की और बैरिस्टर बने काफी संघर्ष और मुसीबत का सामना करके वह 10 जून 1891 को बैरिस्टर कहलाए 12 जून 1891 को वह वापस भारत के लिए रवाना हो गए भारत लौटने पर गांधी जी को यह एहसास हो गया कि कानून पढ़ना आसान था पर बैरिस्टर करना कतई शरण था उन्होंने वकील के दाव पर सीखें ना थे ना ही उन्हें चालाकी से दलालों को अपने पक्ष में करना आता था किसी तरह उन्होंने छोटी अदालत में मम्मी बाई का मुकदमा मिला उन्हें मेहनत आने के रूप में ₹30 मिले महात्मा उसे दिन पहली बार स्मॉल कोच कोर्ट यानी की छोटी अदालत में गए जब वह जी रहा करने के लिए खड़े हुए थे उनके पैर कांपने लगे सिर चकराने लगे हुए सवाल-जवाब पूछना भूल गए या देखकर कैसे उपलब्ध कराने वाले ने उसे कहा आपसे यह मुकदमा नहीं चल सकेगा आप तो फीस वापस कर दीजिए महात्मा उसे समय कुछ ना कह सके उन्होंने उसे उसे दिन यह एहसास हो गया कि अन्य वकीलों की तरह झूठी डाली ले देना और तोर मोर और साक्षी प्रस्तुत करना उनसे कदापि न हो पाएगा बैरिस्टर का बनने के बाद उन्होंने शिक्षक बनने के लिए आवेदन कर दिया लेकिन उनकी अर्जी को आप स्वीकार किया गया यह सब देखकर महात्मा मुंबई से वापस राजकोट आ गए यहां आकर उन्होंने अपना एक अलग दफ्तर खोल लिया और अर्जियां लिखने का काम शुरू कर दिया मगर अब वह इतनी समझ गए की भीड़ के सामने बोलने के लिए आत्मविश्वास का होना बहुत जरूरी है इसलिए उन्होंने एक प्रतिदिन अपने आत्मविश्वास को मजबूत किया और आखिर उनकी अहिंसक नीतियों एवं आत्मविश्वास को ने उन्हें बैरिस्टर से महात्मा गांधी बना दिया।

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